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Saturday, September 22, 2018

बत्ती गुल मीटर चालू फ़िल्म में पहाड़ी भाषा के प्रयोग का प्रभाव


बत्ती गुल मीटर चालू फ़िल्म में पहाड़ी भाषा के प्रयोग का प्रभाव

फ़िल्म बत्ती गुल मीटर चालू का जब से ट्रेलर आया था उत्तराखंड के जनमानस में इसको ले के अलग ही उत्साह था। लोगों को लगा कि इस फ़िल्म की शूटिंग उत्तराखंड मैं हुई है और कहानी की पृष्ठभूमि उत्तराखंड की होने के साथ-साथ इस फ़िल्म में उत्तराखंडी शब्द जैसे कि "बल" और "ठैरा" का उपयोग पलायन की मार झेल रहे उत्तराखंड के लिये वरदान साबित होगा। लोगों को लगा कि अब जो नई पीढ़ी गढ़वाली कुमाउँनी भाषा बोलने मैं शर्म महसूस करती है या अपने आप को पहाड़ी स्वीकारने में संकोच करती हैं, उनमें ये नई ऊर्जा का संचार कर पायेगी और पलायन की राह पर जा रही युवा पीढ़ी को वापस ला पायेगी।
सच्चाई ये है कि ऐसा कुछ होने वाला नहीं है। बस इस बात की जरूर तारीफ करनी चाहिए कि कहानी की पृष्ठभूमि उत्तराखंड है, इससे उत्तराखंड में पर्यटन को अवश्य बढ़ावा मिलेगा परन्तु फ़िल्म में भाषा के साथ जो प्रयोग हुआ है वो बिल्कुल बनावटी लगता है। हाँ, हम लोग "ठैरा" और "बल" शब्दों का प्रयोग अपनी दिनचर्या में करते हैं लेकिन इतना भी नहीं करते हैं कि बिना मतलब के ठैरा और बल बोल दें। इनका एक अभिप्राय होता है जो इस फ़िल्म में नही दिखता है।
कहानी में कई संवाद ऐसे हैं जहाँ इन शब्दों का प्रयोग अनावश्यक लगता है और इस अनावश्यक उपयोग ने फ़िल्म को बोझिल बना दिया है क्योंकि भाषा का मूल चरित्र कहीं खो सा गया है।
आपने अब तक फ़िल्म देख ली होगी या फिल्म समीक्षकों की टिप्पणीयाँ पढ़ ली होंगी जिसमे सभी समीक्षकों ने फ़िल्म को औसत दर्जे की फ़िल्म माना है। मेरे लिखने का अभिप्राय बस इसमे उपयोग हुए गढ़वाली और कुमाउँनी भाषा के शब्दों पर टिप्पणी करना था।